सरकार की सल्तनत में

आरजूओं को
रात में ढल जाने दो
सुबह की इन्तजार में
ताकि
कुछ शब्द जलते रहे
और कुछ शब्द बाकी रहे !

चमन हो और
ख्वाब भी हकीकत हो
यह मुमकीन नही
रात की विरानगी में
जुगनूओ का डेरा रहे
ताकि
चांद कुछ बाकी रहे !

ऐसी उम्मीद कि
लाठी मिले
मुफ़लिसी को
ताकि
उनकी आंख खुलती रहे
और सरकार की सल्तनत में
अल्पसंख्यकों की नींद सलामत रहे !