वे तो बस चादर पर पड़ी सलवटें थी

आँगन में तुलसी मुरझाई हुई थी
पदचिन्हों के पीछे कही कोई
आवाज शेष नही थी
और दहलीज से पार
कही कोई महफूज शाखें नही बची थी

घटना कुछ ऐसी थी कि
ख्वाब से बाहर आते ही
चादर पर
सिलवटों का दिखना और
पृष्टभूमि से आती हुई
बिना सुरताल की आवाज का
कानों से टकराने जैसा था 

कही कोई सपाट
और सीधा रास्ता नही था
मासूम चिंट्टियों को बाहर आने के लिए
सारे रास्ते बंद किये जाते रहें थे अबतक

बारिश में
बंद दरवाजों से
जब भी वे बाहर आती थी
दीवारों पर
सीलन साफ नजर आता था !