एक संवेदनशील वक्त में

कई लोग एक चित्र को
एक तरफ से देख रहे थे और
कई लोग दूसरी तरफ से
कुछ ऐसे भी लोग थे
जो एक चित्र को
कई कोनो से देख सकते थे
 

शीशे मे कैद अक्स
अकसर हमारे वजूद को हिला देता था
 

समाज अंधेरे मे रखा तरल पदार्थ है
जिसका कोई अपना ठोस आकार नही है
सिर्फ और सिर्फ नजरो का धोखा है
वर्चस्व के हाथो का खिलौना मात्र है 


संवेदनशील वक्त की तलाशी 
लेते वक्त 
इंसानियत की आँख 
लाल मिर्च के बीच 
थाली मे पड़े मिले !