वे बेच रहे है आँख और पहाड़

कौन सा राष्ट्र
धर्मनिरपेक्षता के नाम पर जो 
धर्मो के बाजार की राजनीतिकरण है  
किस अनुशासन की बात करते है वे लोग
जहां ताख पर रखे नियम क़ानून को
तब उतारा जाता है
जब कोई गिद्ध या चील जाल में फंसते है 
  
चिंट्टियो के बिल में
झोंक देते है वे सारी उम्मीदें
जहां सिर्फ अन्धेरा है और कीड़े
उनके बीच अपनी मूंह खोलने वालो को
अपनी औकात खानी पड़ती है बेबसी में 

सुबह का सूरज देखने के लिए
उन्हें देखना होता है उनके शीशे में
और धुप को
अपने पूर्वजो की पूंजी बताते है वे
और बड़ी ही सहजता से निगल जाते है चाँद
कर देते है तारों की पूरी जमात को
अंधेरी रात के हवाले
चांदनी को लूटते है व्यवस्थापिका के नाम पर

साहब लानत है
जहां आम को आरी से काटा जाता है और
और कटहल चौराहें पर बड़ी ही ऊँची आवाज़ में
अपने काबलियत का परचन लहराता है
लाठी और सिक्को के जमीन पर 
मोटी चमड़ी होने के बावजूद
वह राष्ट्र को संबोधित करता है

अँधेरे में औरतें बच्चो को सुलाती है
कौन से कौम से आये है लूटेरे
जिनके चश्में में झांकना मुश्किल
माँये धरती हुई जाती है
बंजर
उसपर वे तेज़ाब का कुआँ खोदते है

बेच रहे हैं आँख और पहाड़
लूटकर मासूमियत
किसे देश कहे और किसे देश भक्त
क्या हम अपने बच्चो के उनकी अपनी आँख लौटा पायेंगे !




4 comments:

  1. कौन सा राष्ट्र
    धर्मनिरपेक्षता के नाम पर जो
    धर्मो के बाजार की राजनीतिकरण है
    किस अनुशासन की बात करते है वे लोग
    जहां ताख पर रखे नियम क़ानून को
    तब उतारा जाता है
    जब कोई गिद्ध या चील जाल में फंसते है
    सही कहा आपने नियम कानून तो आम आदमी के लिए हैं इन गिद्दों केलिए कोई नियम कानून नहीं है
    latest post होली

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  2. सुन्दर प्रस्तुति है आदरेया-
    आभार ||

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  3. वाह! सुन्दर रचना | भावों से ओत प्रोत | आभर


    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

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  4. जानदार प्रस्तुति

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