दहलीजें उनकी जला दी गई थी

खास लोग थे जिन्हें
लोहे की फैक्टरी खोलना था
गरीबी की सारे मोम पिघल गये थे
और उनकी दहलीजें जला दी गई थी

जंगल में सूखी लकडियों की बाढ़ आ गई थी
और उनके रैन-बसेरों को जलाया जा रहा था
जो जीवन को जीना जानते थे
घातक नही उर्वरक थे
समाज की सुक्ष्म इकाई

और इंसानियत के आधार भी

वर्दीधारी बंदूकवाले
उनके पीछे छोडे गये थे
ताकि जंगल को मिटाया जा सके
और पत्थरों को उगाया !

और अब कैद में है

वर्षों तक एक ही शब्द के जिस्म में पनाह ले रखी थी
और बाहर महंगाई काट रही थी अक्षरों को
पन्नों पर स्याही बिखरने लगा था और हम थे कि
शुतुर्मुग की तरह 
तुफान न होने की सम्भावाना को बनाये रखने के लिये
सिर छुपाये बैठे थे

कहर कुछ इसतरह बरपा था कि
सम्वेदनायें शाखो से कट कटकर गिर गई थी और
हम ठूंठ पेड़ को
समझ बैठे थे अपना घर
पन्नों के हिस्से में थी प्यास जो खाली था 
उसे पढने के लिये ज्ञान की नही
बल्कि दिल की जरुरत थी 

वह घर जो सफ़र में छूट गया था अकेला
अब वह किताबों से भरा पड़ा है
और हम भटक रहें शब्दों के भीड़ में
उसका मिलना
किताबो के बीच सूखें फूल की खुशबूओ की तरह है 
जिसे ना कोई किताब
ना वक्त ही कैद कर पाया
वह उड़ता रहा हम भटकते रहे
और अब कैद में हैं
सजे-सँवरे किताबों के बीच !!