मिठ्ठे मासूम मुस्कानों के पीछे से

बच्चों के पैरो में बेबसी के
कोयले पोते जाते रहे
दूसरे किनारें पर लटकता सूरज 
सुबह सुबह भूख उगाता रहा 
पीने के लिये कीटनाशक मिलते
इतनी सडकें सख्त की चलना उसपर
मुश्किल तरीका बनता गया

भूले भटके लोंगो की तदाद इतनी
कि भीड में
आंखे अपनी पैर तलाशती
रातें ग़ीली होती थी और सपनें
घरो में टंगे सूखते मिलते
हाँथ कोसो दूर बंजर जमीन कोडती
और पेट भर भूख निकलता 

गरजते बादल उमड घुमड के
कही और बरसते रहे
बिजलियाँ उनके कलेजे पर गिरती रही
दीवारें प्यासी ही ढहती गयी
मायूसियों में खामोशी की नुकीली दांत
नोंचते हुये गरीबी को आंख दिखाती रही 

रौशनदान से एक गौरैया रोज आती
और एक तिनके से
घर को घर बनाती
आज महीनों बाद भी वह डूबा मिला
और शाम की तरह
मायूसी की चादर लपेटे हुये खामोश रहा  

फूल जैसे सबसे सुंदर बच्चे कोयले की खादानों के
अंतर तल पर उसके इंतजार में 
एक मूँठी प्यार लिये उसे पुकारते रहे
सबसे मिठ्ठी मासूम मुस्कानों के पीछे से
जरूर आयेगा वह
उनकी कविता लौटाने  !!

जंगलवाद के वितान पर

कुर्सियों के बीच
जमघट पत्थरों की थी
विस्फोटकतंत्र था शहर 
गाँव उदास जलता रहा
पगडंडियों से
पदचिन्हें विलुप्त होने लगी थी

जंगलवाद के वितान पर
जंगल लुप्त
चीख पुकार से
वे भयभित नही थे
उनका नया शौक था 
शिगार फुकते हुये
नसलो को धुँआ में उडाना

वे आभागे लोग थे
जिनके पास घुमती गोल पृथ्वी नही थी
उनका लौटना किसी सुबह हो सके !!
 

वही जहाँ तुम्हारा आना जाना है

कौन से कोने में
छुपाऊ
सफेद कबूतरों को 
रह सके, सफेद
और बदले नही
उनकी दुनिया
ऐसा मुकम्मल जहाँ
कहाँ से लाऊँ

भोर के होते ही
घण्टालो के बीच
दब जाती है सुहानी सुबह
शोर के साथ 
दिन की शुरुआत
रास्तो पर बिखर जाती है
मासूम हंसी
और
कुचलते जाते हैं
निर्मम पैर

उन्हें पता है कि
तपिश क्या होती है
पर क्या करे
सूरज थोडा और गर्म होता जाता है

सोचती हूँ एक सूराख बनाऊ
हिमखण्डो के बीच
कंचनजंघा पर रख उन्हें
सौप दूँ तुम्हारे विशाल आगोश में
और सो जाऊ एक गहरी नींद
वही
जहाँ तुम्हारा आना जाना है !! 

चिराग‌‌ यूँ ही नही जला करते

 1.

छोटे तारे रोज देखते है
अपने अनंत आकाश से
चाँद के आगोश में
संवरते है रोज
फिर भी
टुटकर बिखर जाते है
मिट्टी की
सौंधी खुशबू की चाहत में !!

2.

चिराग यूँ ही नही जला करते
अंधेरे से दोस्ती रही होगी कभी !!

3.

बाजार एक सपना है
नये परिंदों के लिये
घोंसलों को मिटाया जा रहा है
चाँदी के चंद टूकडो के लिये !

4.

जाने वो कौन से मकाँ थे
टूटते चले गये
बिखरे गहन सन्नाटों के बीच
आज भी
इबारते जिंदा है और
उपजते है ख्वाब
किताबो की जमीन पर !!

5.

डाल डाल गया
पात पात डोला
परिंदें की चाहत रही
छाँव
पर वह बरगद ना मिला
जिसकी लटों से
भरी दोपहरी में
शीतलता टपकती थी !!

6.

इतना बरसा बादल कि
समंदर भी स्याही से
कुछ लिखता मिला !!

7.

साहिल पर आकर
कश्तियों का
डुबना भी खुब था !!

8.

 बचे रहने के लिये
जरूरी था कि
सबुत के तौर पर
सांसो की चीरफाड़ हो
और मुश्किल था
साबूत बच पाना !!

9.

मिटा मिटा के लिखना
और मिट मिट कर लिखना
कैसी दुश्वारियाँ है सांसो की !!

10.

एक जमीन हमनें ना बनाई
एक आकाश तूने ना बनाई
रिश्तों के सर जमीन पर
वे कौन से मकान थे
जो बनते चले गये !!
 

मिट्टी में कैद खुशबू

1.
शब्दो के हंस
झील में कबसे से है
कुछ ठीक ठीक याद नही !!

2.

गमों को कुछ
यूँ दफनाया
कि
किताब में खिलकर
फूल हुआ !

3.

किनारो की बेबसी ऐसी
कि
तुफानो को समेटे हुये है !

4.

रात की स्याही
बढती जाये
सुबह का बादल
जमते जाये
सपनो के तारे बिखरे पडे हैं
पर
आस का चाँद
डुब ना पाये !

5.

तपिश बढती रही
जिंदगी की नमी को
बादल ने चुरा लिया था !

6.

एक दीवार थी कही
गिरा दिया उसने
जिंदगी से भरी
रौशन शब्दों से
रु-ब-रु होती रही !

7.

चिंटियाँ जमीन को
खोंखला करती रही
सुबह सुबकती रही
समंदर उफनता रहा
खोखली जमीन पर
भुकम्प के झटके लगते रहे
दीवारें दरकने लगी है अब !