उनके चेहरे पर सपने

आज भीड है हर जगह
और उनके चेहरे पर सपने
जेबे तलाशती हुई
पर उसमे सिर्फ बचे
ईंट पत्थर

हाशिये से बाहर लोग
अब बस भीड का हिस्सा है
बदहवास सांसो की जमीन पर
सपने में सिर्फ भूख है
और उनके जलते पेट को  
एक पूरी नींद मय्यसर नही
कि ख्वाब में भी पूरा चाँद सा थाली मिले

आंख और
उनके सपनों के बीच जब
उनकी कुतर दिये गये जेबें आ जाती है
तो सूरज जल उठता है
और धरती पीली हो जाती है

तब कुर्सियाँ आसमान से टंग़ी
हवा में ईंधन छोडती नजर आती है
फूँकते हुये गरीबी
उसपर बैठी
दो जोडी गिद्ध की आंखे नजर आती है
कुछ तो गडबड है !!

9 comments:

  1. हमेशा की तरह जानदार ...

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  2. आंख और
    उनके सपनों के बीच जब
    उनकी कुतर दिये गये जेबें आ जाती है
    तो सूरज जल उठता है
    और धरती पीली हो जाती है...

    सटीक और सुन्दर रचना ... नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें.....

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  3. दो जोडी गिद्ध की आंखें .........

    बहुत ही अदभुत , बहुत प्रभावित करने वाला

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  4. नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें.

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  5. चमत्कृत करते बिम्बों से सजी अत्यंत प्रभावशाली सशक्त रचना....
    सादर बधाई आदरणीया संध्या जी...

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  6. हतप्रभ करने वाली शानदार रचना !
    नव वर्ष की बधाई !

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  7. प्रभावशाली सुन्दर रचना……………नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें.

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  8. बेहतरीन........आपको नववर्ष की शुभकामनायें

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  9. बेहतरीन अभिवयक्ति.....नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाये.....

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