तिलिस्म को करीब देख

गमों से पार हो
कश्ती
जला के दीप
करीब देख

अंधेरा हो घना
तो सुबह के साथ
सूरज को 
करीब देख

मचलते अरमान को 
गर गले लगाया तूने
तो दरिया को
करीब देख

हो सके तो लौट जा
आशियाने में
वरना आग को
करीब देख

जमीन और आसमान
मिलेंगे जरुर पर
उससे पहले
समंदर को
करीब देख

तेरी लेखनी में
वो दम है कि
छूते हुये आसमान को
करीब देख

वो है रहन्नुमा
कि तू बेफिक्र हो
साहिल को
करीब देख

माना मैंने आज की
शब्द है जादू तेरे
पर नादान दिल
तिलिस्म को
करीब देख !!

अय नदी

गमों से पार हो
अय नदी

जीवन में धार हो
अय नदी

गुजर जाये गर मझधार हो
अय नदी

बन जा सुर ताल
अय नदी

कलकल हो सांसे
अय नदी

गरीबी हो पार
अय नदी

शियासत तू डुबा
अय नदी

बन जा तारण हार
अय नदी

जंगल हो आर पार
अय नदी

पृथ्वी की तू श्रृन्गार
अय नदी

सदियों की गवाह तू
अय नदी

चढे परतों को तू धो
अय नदी

सूखी जमीनें नम कर
अय नदी

मानवियता हो संग संग
अय नदी

सपाट कर गमों के पहाड
अय नदी

वक्त का तू आईना बन
अय नदी

तानाशाहो को दिखा तू
अक्स
अय नदी !!

एक प्लेट जलेबी में मिठास इश्क सा

जाल है दुनिया,
और भटकन में सुलगता तन और मन
भुलभुलैया जैसी ऊँगलियो की 
उलझन में हर एक एहसास
सांस की अंतिम विदाई जैसा कुछ

आंखे डरी सी
पुतलियाँ छुपी बैठी और सहमी हुई
वे आते है
गर्म सलाखो को दिखाते हुये
सिसकियाँ जब तेज़ होती है
और टकराती है उनके मशीनी सीने से

घाघ है वे
दिखा रहे है हाथी दांत
आप उनके बातो में ना आये
वे अपने झोले का पुरा ख्याल रखते है
जिसमे भरी हुई है सोनपरियो के पंख
और मोल ले लेंगे आपके ईमान
छप रही है रंगीन भाव आजकल
जो जहर है आपके बच्चो के लिये

कलेजे में पत्थर भरते है और आग उगलते भी 
वे जगाते नही सुलाते है घर आंगन
उनके प्राण जिहादी बन
एलान में गोली फुंकते और रौंदते
दौडते भागते इंसान
खुन की प्यास उनकी ऐसी
समुंद्र लांघती हुई  बंदुको से

नंगी हकीकत से थककर
धरती की हरी घासे पीली हो गई
माँ के आंखो की झुर्रियो में परेशानियाँ दबी रही
वह जहाज के न डुबने वाले तरकीबो से मनुहार करती रही
पर समन्दर की अपनी खास सीमा है माँ
जो तू नही समझती जिसमे अमीर लोगो की फालतू चीजे
गरीब सीमाओ पर बहते रहे है
तेरी आह नही जला सकती उन्हे
क्योंकि उनके कुर्सी के नीचे घास है

तुम्हारे रोने और सोने के बीच में
एक सूरज उगता है
लोग बेच देना चाहते है उसे
पर उन्हे यह नही पता कि
गर्म पिघलते लावा को
आखिर किस टोकडे में रखकर बेंचेगे
माना उसे बेंच भी दे वे ,
तो जलते सूरज को रखेंगे किसके माथे

जगह जगह पर है भूखों के टीले
वे आलाव है रुक रुककर फुटती चिंगारियों की
तपने लगे है नंगे हाथ
जश्न है पर औरत के हाथ अभी तक खाली
सुरमई शाम उतरती है और
दाव खेलती है दुर्योधन के चौसर पर
पर किशन नही देते लाज की पट्टी अब
सबकुछ खुल रहा है एक शुरु की तरह से

वे समझते रहे कि ख्वाहिश
एक प्लेट जलेबी है जिसका मिठास इश्क सा है
वे ख्वाब को हथेली पर रख
नरम धूप में उगाना चाहते थे
जिसकी पवित्रता में डुबने की चाहत लिये
मरते आ रहे थे हमसब सदियो से

सांस की तीव्रता पर ख्वाब की गहराई
नींद से भी छोटी है !!!

सिफर हो गई थी दुनिया

सिफर था
जिसपर करवट ली उसनें
देखती रही कि
जमीन और आसमान
कही एक जगह पर
डूब गये थे 

मौसमों के फेर बदल नें
जमीन को गहरा 
और आकाश को
और ऊँचा कर गया था 

क्षितिज के किसी कोनें में
सांस ले रही करवट
देख रही थी
पिछ्ले कई दिनों की
कोशिशों के बाद
सूरज ने आंखे खोंली थी
साहिल पर 
हिमगिरि के माथें को चुमतें हुये

पर बदलाव हर जगह
जारी था सौंरमंडल में
ग्रहों की साजिश थी
प्रकाशगति को बाधित करनें की
हम सब विस्थापित हो रहें थें
सिफर हो गई थी दुनिया 
ग्रहतंत्रों के जाल में  !!

कैनवास पर फैला आसमान

छाँव में बैठी
एक नन्ही सी जान 
छू लेना चहती है
कैंनवास पर फैले
लम्बे चौडें आसमान को

ब्रुश से बिखेरते हुये 
कुछ जमीनी रंगों को  
और समेटना चाँद-तारो को
नन्हें हाथो से

जिद्द को गले से लगाये बैठी है कि 
पूरा आसमान चाहिये     
या उस तक पहुंच जाने की
एक उडान बस
गहरे और हल्के पेंसिल से
बनाती हुई कई शेड्स
चमकते सूरज का

रंगना चाहती है
उन तितलियों को भी
जिन्हें नही मिला है रंग
कुदरत से
और वे दिन के उजाले में नही उडती

उडना भी 
पंक्षियो के बीच उन्मुक्त हो
गहरे आसमान की गहराई में 
माप लेना
जमीन और आसमान के बीच की
खालीपन को चंद रंगों से

उतारना कुछ रंग आसमान से भी
जो जमीन से गायब है अब
उन चेहरों को सजाना भी
जिन्हे बचपन ने बेरंग कर दिया था  !!

शहर भी ना ......

शहर के नुक्कड पर लगे
पोस्टर की तरह जर्द हो चला है वो
पर शाख से गिरा नही अभी तक
अरसा कुछ सरक गया है
ठहरा है कई मौसमों के बीच 
पहचान भी नही बदलता 

रुत आती है और जाती है
उसे अपने गलियों ,चौराहों तथा चौराहो पर
चिपके पोस्टरो की तरह ही चिपका देखती है हरदम
हलांकि कई जगहो पर पोस्टरो को
परिंदो ने चोंच मारकर फाड दी है 
बेचारे टंगे हुये है फटेहाल
और शहर की उस नुक्कड का पहचान बने खडे 
या वे खडे है या उनमे शहर खडा है
किसी भी तरह से देखा जा सकता है

उसकी चौराहों से
सटी गलियाँ है और उनमें बहते नाले
शहर की पहचान के साथ ही बहते है 
वे भर गये है प्लास्टिक के महिन थैलियो से

पर फिर भी वे शहर के
उसी गली के नाम से बहते है 
ऐसा कहा जा सकता है कि
शहर नही छुटता उन गलियो का, चौराहो का और
नुक्कड पर टंगे पोस्टरो का
या गलियों में बहते नालों का

सभी के सभी अपने जगह पर वैसे ही  है
और पहचान है
उन कुनबों का जिनका शहर से बाहर जाना
वक्त का तकाजा रहा  

जर्द और सर्द
सभी मौसमो में साथ खडा रहा है 
उनके होने के एहसास के साथ
लौटने का इंतजार में  टिके हुये 
और नही बदलता अपना पता वह
खत के आने के इंताजार में
शहर भी ना !!!



तू जिस्म नही रूह है

तू रूह है
तस्वुर की खाक
तो जिस्म है

पौ फटने के वक्त
सूरज का आसमान  पर
उगने से पहले
पंक्षियों के कलरव के बीच 
तेरा हो जाना
तू जिस्म नही रूह है

चाँद का चाँदनी से
मिलने के ठीक
पहले के वक्त में
सितारों के बीच 
तेरा हो जाना
तू जिस्म नही रूह है

खुब खुब भींगना
मेध के बरसने के ठीक
पहले के वक्त में
बादलों से झांकना
तेरा हो जाना
तू जिस्म नही रूह है

आग लगने से
पहले की चिंगारी तू
और खाक होने से पहले
तेरा बस हो जाना
तू जिस्म नही रूह है

तुफान के उठने से
ठीक पहले के वक्त में
हल्की और मधूर ब्यार से
सिहरन का पैदा होना
और तबाह होने के पहले
बस तेरा हो जाना
तू जिस्म नही रूह है

डुबने से पहले
उठते भँवर में
चक्कर खाने के बीच
बस तेरा हो जाना
तू जिस्म नही रूह है