यंत्रो के षडयंत्र में

सिसक रही है कोठियाँ
ईंट पत्थरों के जुबान  से 
खालिश रेत सी है भाषा
दीवारों पर
स्पष्टरुप से  चेतावनी लिख दी गयी  है

ग्लोबल वार्मिंग पर
रईसी माथे का टीका है
जो नित नए नुस्खे से
बढ़ा रही है ताप
यंत्रो के षडयंत्र में 

पौलिथींन एक फैशन
तो  दूसरी  तरफ 
पलायनवादी स्वाभाव  के कारण 
सब भाग रहे हैं जमीन से 
और चिपक रहे हैं आसमान से
पर कही कोई पंख नहीं है

सुविधाओं के ऊँचाई से
गिरने के बाद कही कोई जमीन नही मिलेगी
चारो तरफ खाई पसरी होगी

सबके लिए करींने से परोसा जा रहा है खाना
और हम सब सिसकती घरों को भूलते जा रहे हैं
और भूखी नंगी दीवारों को 
जो रोती है बीते पहर 
कान और आँख ऊँचाई पर
काम करना जो बंद कर  देते  है

मानवीय जुबान गुंगी हो चुकी है
यंत्रो के षडयंत्र से
पर आज भी अनिष्ट के अशंका में 
कुत्ते भौंकते है गलियों में 
बीते पहर जब सब सो रहे होते है !

3 comments:

  1. मानवीय जुबान गुंगी है आज
    यंत्रो के षडयंत्र से
    पर आज भी
    कुत्ते भौंकते है गलियों में
    जमीन से जुड़े होने का
    एहसास जो दिलाते है !

    Khoob kaha.... Aj ke Jeevan ka sach yahi hai...

    ReplyDelete
  2. मानवीय जुबान गुंगी है आज
    यंत्रो के षडयंत्र से
    पर आज भी
    कुत्ते भौंकते है गलियों में
    जमीन से जुड़े होने का
    एहसास जो दिलाते है !!....kai bar jivan ka sach bhi bada kadva hota hai.

    __________________
    शब्द-शिखर : 250 पोस्ट, 200 फालोवर्स

    ReplyDelete
  3. Aap ke ye eheshas bhare shabd sub jantehai....par pata nahi chal raha hai ki sub hath badhe huye hai....treno mai, feacbook ,mai har jagah in bato ki charcha hoti hai....bash charcha ke shiwa kuch nahi hota....ab charcha se bhi log bhag rahe hai......kya pata kabhi ladayi chedi jayegi ish DHARTI MAA KO BACHANE KE LIYE.....SHANDHYAJI aap ki kavita ye eheshash se bhari huyi hoti hai...AUR ISHI ESHASH KE WAZAH SE DUNIYA KAYAM HAI...

    ReplyDelete