कैद है धड़कन

लोगों का कहना था कि
आज चाँद पर उथल-पुथल है
इसतरह मेरी जमींन की चाँदनी धुंधलाने लगी 
और धडकनें भी
तुम्हारे मुठ्ठियों में बंद पडी रही

रात स्याह कुछ ज्यादा थी
वह खडी रही मेरी जमीन पर
भोर के इंतजार में
पर सूरज थोडा कम था
सुबह आंख मुदे पडा रहा
तुम्हारे किनारे से लग

ना तुमने मुठ्ठियाँ खोली 
ना भोर ने आंखे  
न रात को नींद आयी
और धडकनें भी बंद रही
तुम्हारी मुठ्ठियों में  कही !!

8 comments:

  1. क्या बात है संध्या जी,बहुत सही और बहुत अच्छा लिख रही हैं आप.वाह वाह.

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  2. इसे पढकर ही मैं खुश हो गया , क्या लिखा है , वाह . आखरी पाराग्राफ तो कमाल का है जी .. बधाई

    आभार
    विजय
    -----------
    कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html

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  3. sundar bhaavon ke mishran se saji lekhni.very nice.

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  4. सुन्दर भावाव्यक्ति।

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  5. ना तुमने मुठ्ठियाँ खोली
    ना भोर ने आंखे
    न रात को नींद आयी
    और धडकनें भी बंद रही
    तुम्हारी मुठ्ठियों में कही !!

    वाह ... बहुत ही बढि़या ।

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  6. ना तुमने मुठ्ठियाँ खोली
    ना भोर ने आंखे
    न रात को नींद आयी
    और धडकनें भी बंद रही
    तुम्हारी मुठ्ठियों में कही !!बहुत ही सुन्दर रचना.....

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